पांच रुपये का स्ट्रीट रोमैंस
पांच रुपये का स्ट्रीट रोमैंस खरदाह पुस्तक मेले से निकलने पर सामने एक गली जाती थी जो मुख्य सड़क से मिलती थी। पुस्तक मेला होने के कारण आज उस गली में बहुत सी दुकानें लगी थी... टेंपरेरी दुकाने। कहीं बीस रुपये के तीन चिकन पकोड़े मिल रहे थे तो कहीं पंद्रह रुपये के घुघनी। एक ओर चाइनीज़ फास्ट - फूड का स्टॉल था तो दूसरी ओर बंगाल के पारंपरिक पीठे और जलेबी का। एक ठेले पर लकड़ी का कांटा चम्मच और अन्य बर्तन बिक रहे थे तो एक ठेले पर हैंडमेड आर्नामेंट्स। बाएं तरफ बच्चों के खिलौने की दुकान थी तो दायीं तरफ कागज़ का सांप चलाता विक्रेता बैठा था। कुछ आगे चलने पर मोमो का टेबल था उसके दूसरी ओर पानी पूरी का ठेला। ऐसी कई दुकानों से गली भरी पड़ी थी। उसके अंत में एक बूढ़ी औरत जमीन पर जूट की बोरी बिछाए पापड़ बेच रही थी, वहीं से सफ़िया और हेमंत ने पांच रुपये का पापड़ खरीदा था और गली के मुहाने के बाएं तरफ बने पुस्तक मेले की गेट के पाए और घर की दीवार के बीच खड़े हो गए। थोड़ी रोशनी और थोड़े अंधेरे में खड़े दोनों पापड़ को देख रहे थे। पुस्तक मेले से निकलने पर हेमंत