पांच रुपये का स्ट्रीट रोमैंस



                     पांच रुपये का स्ट्रीट रोमैंस 


                           खरदाह पुस्तक मेले से निकलने पर सामने एक गली जाती थी जो मुख्य सड़क से मिलती थी। पुस्तक मेला होने के कारण आज उस गली में बहुत सी दुकानें लगी थी... टेंपरेरी दुकाने। कहीं बीस रुपये  के तीन चिकन पकोड़े मिल रहे थे तो कहीं पंद्रह रुपये के घुघनी। एक ओर चाइनीज़ फास्ट - फूड का स्टॉल था तो दूसरी ओर बंगाल के पारंपरिक पीठे और जलेबी का। एक ठेले पर लकड़ी का कांटा चम्मच और अन्य बर्तन बिक रहे थे तो एक ठेले पर हैंडमेड आर्नामेंट्स। बाएं तरफ बच्चों के खिलौने की दुकान थी तो दायीं तरफ कागज़ का सांप चलाता विक्रेता बैठा था। कुछ आगे चलने पर मोमो का टेबल था उसके दूसरी ओर पानी पूरी का ठेला। ऐसी कई दुकानों से गली भरी पड़ी थी। उसके अंत में एक बूढ़ी औरत जमीन पर जूट की बोरी बिछाए पापड़ बेच रही थी, वहीं से सफ़िया और हेमंत ने पांच रुपये का पापड़ खरीदा था और गली के मुहाने के बाएं तरफ बने पुस्तक मेले की गेट के पाए और घर की दीवार के बीच खड़े हो गए। थोड़ी रोशनी और थोड़े अंधेरे में खड़े दोनों पापड़ को देख रहे थे। पुस्तक मेले से निकलने पर हेमंत सफ़िया को चिकन पकोड़ा खिलाना चाहता था पर उसके बटुए ने उसे इस बात की इजाज़त नहीं दी।
" बोन्धु आमी चिकेन पकौड़ा पोछन्दों कोरी  ना" कहकर सफ़िया ने चिकेन पकौड़ा खाने से मना कर दिया। वह जानती थी कि उसका पति इस समय इतना अफॉर्ड नहीं कर सकता है।
                            पापड़ का पहला टुकड़ा हेमंत ने अपने हाथों से सफ़िया को खिलाया तो सफ़िया को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसने पूरी जिंदगी में ऐसा स्वाद कभी न चखा हो। दोनों की शादी को एक  बरस बीत गए थे, धर्म से बाहर जाकर हेमंत ने विवाह किया था जिस कारण उसके घर वाले ने किसी तरह की मदद से मना कर दिया था। बस घर का एक कमरा मिल गया था रहने के लिए। हेमंत बहुत पढ़ा लिखा नहीं था, क्योंकि उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इस कारण उसे कोई बड़ी नौकरी नहीं मिल सकती थी और अंतर धार्मिक विवाह के कारण समाज में कोई काम नहीं देता था। बहुत मुश्किल से मेहनत मजदूरी करके इतना कमा पाता कि दो वक्त की रोटी चला सके। वह तो भला हो उसके दोस्त का जिसने पुस्तक मेले का पास उसे दे दिया जिस पर लिखा था - ' टू पर्सन्स ओनली'।
                            पापड़ का अगला निवाला सफ़िया ने हेमंत को खिलाया तो हेमंत की आंखों में आंसू छलक आए वह बोल पड़ा - " सॉरी, आमि...... " सफ़िया ने उसके होठों पर अपना हाथ रखा और बोली - "ना बोंधु, आमी शुधु तोमाके भालोबाशी, आर किछु दोरकार नेई।" पापड़ की कुरकुरी आवाज़ उसके कुरकुरे रिश्ते को बयां कर रहे थे। सफ़िया ने जब पहली बार हेमंत को देखा था तब उसे कुछ अजीब सा महसूस हुआ था जैसे उसके पूरे बदन में सिहरन भर गया हो। बहुत हिम्मत करके उसने हेमंत से उसका नाम पूछा था। जवाब देते समय हेमंत का गला सूख गया था, वह पहली बार किसी लड़की को अपना नाम बता रहा था। सूखे गले से नज़रें नीची करके वो बोला - "हेमंत!"। सफ़िया की हंसी छूट गई। उसकी हंसी देखकर हेमंत ज़रा सहज हो गया। हंसते हुए सफ़िया ने कहा - " एतो भोय पाच्छो केनो?"  हेमंत मुस्कुरा दिया और कोई जवाब नहीं दिया। हेमंत ने पापड़ का एक टुकड़ा सफ़िया को खिलाया और इधर-उधर देखने लगा उसके माथे पर डर की सिकन थी, सफ़िया ने पूछा- "  की होलो बोंधु?"
" जोदी अमादेर केउ देखे नेबे एई रोकोम?" हेमंत ने जवाब में कहा। सफ़िया ने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमा लिया और कहा - " भोय पेयो ना बोन्धु। आमार चोखे देखो...... एई नाओ पापड़ टा खाओ", सफ़िया ने पापड़ का एक टुकड़ा हेमन्त को खिलाया और कहा - " भालोबाशा भोय नोय, शाहोश दैय।"
                               जब हेमंत अपने घरवालों से सफ़िया से शादी की बात करने जा रहा था तब सफ़िया ने ऐसे ही हिम्मत बंधाया था। हेमंत के घरवाले गुस्सा जरूर हुए थे पर घर का एक ही बेटा होने के कारण उन्होंने उसे शादी करने की इजाज़त दे दी थी पर एक रुपए की भी मदद से इंकार कर दिया था। सफ़िया के घर में भी कुछ ऐसा ही था उसके अब्बू ने कहा - "तुमि तो मेय...... बियेर पोरे चोले जाबे..... आमार कोनो ओशुबिधा नेई। बाकी आमी ऐक टाकाओ हेल्प कोरते परबो ना"। सफिया की आंखों में आंसू थे वह कुछ बोल नहीं पा रही थी आगे उसके अब्बू ने कहा - " आरो ऐकटा इंपॉर्टेंट कोथा  आछे जे बियेर पोरे अमादेर साथे कोनो रोकम जोगजोग कोरबे ना...."। इतना सुनते ही सफिया फूट कर रोने लगी - "अब्बू........।"
" ना........ तुमि जाओ, एखूनी चोले जाओ।" अब्बू के बातों में एक चुनौती झलक रही थी मानो कह रहे हो कि ' मेरे सपोर्ट के बिना जीवन चला कर दिखाओ'। दोनों घर वालों की नाराजगी लेकर मैरिज रजिस्ट्री ऑफिस में जाकर कोर्ट मैरिज किया था, जिसके आज एक वर्ष पूरे हो गए थे। शादी की सालगिरह पर दोनों पुस्तक मेला घूमने आए थे। गली के नुक्कड़ पर खड़े होकर पांच रुपये का पापड़ खाते हुए जिस रोमांस का एहसास हो रहा था वैसा पहले कभी नहीं हुआ था।
                        सफिया ने आईएस की रिटेन परीक्षा पास कर ली थी, इंटरव्यू भी दे चुकी थी इंटरव्यू काफी अच्छा गया था अब इंतजार था तो बस परिणाम का।

                                                                                                                                        ------- मदन मोहन
                                                          1 जनवरी 2020

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