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मेरी कविताएं

                        ठगी हुई औरत                        27 Oct. 2018 ठगी गयी औरत ठगी जाती है औरत तंगी में बचपन मे जवानी में बुढ़ापे में स्वीकार कर लिया है इसे उसके कोमलतम हृदय ने सदियों पहले और आज भी बड़ी जन्मी बेटी बेटा कहकर ठगी जाती है गुरेज़ है उन्हें बेटी कहकर सामान्य प्यार देने में जवां होती है ठगी जाती है स्वप्नलोक बता कर भेज दी जाती है सांकलों से बने चारदिवारी में ब्याह कर  ढलती उम्र के साथ ठगी जाती है बार बार कभी बेटे के ममत्व से कभी पतिव्रता सम्मान से तो कभी मेहनतकश, सामाजिक, मिलनसार, शांत, ग़मखोर जैसे शब्दों के जाल से उसने आत्मसात कर लिया है ठगी के इस जंजाल को वर्षों पहले और आज भी।                               ख़याल                        16 Feb. 2020 बहुत ही उलझन होती है तब जब सोते-जागते उठते-बैठते हर पल कोई ख़यालों में घूमता हो और मन कहे ये ख़याल ग़लत है। जब किसी का ख़याल मन पर मेघ की तरह छा जाए तब कशमकश और बढ़ जाती है इस बात से कि मेघ को बरसने को कहूँ या छंट जाने को वो भी तब जब पता हो कि मेघ का पानी किसी