द अदर डायमेंशन
द अदर डायमेंशन
आज मैंने कुछ ऐसा अनुभव किया जो शायद संभव न हो। सुबह जागने के बाद पानी पी कर मैं दुबारा सो गया अचानक से मेरे रूम का दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आयी मैं उठकर दरवाजा खोला मेरा भांजा आया और मुझे बोला :
- "ये पानी को कपड़े से पोछ दीजिये न, पूरा पैर में लग रहा है"
मैने टालते हुए उसे बोला :
- "अभी जाओ मुझे सोने दो"
फिर मैं सोने के लिए बेड की तरफ बढ़ा उसी समय मुझे याद आया कि पानी तो सुबह पीने के समय मुझसे गिरा था इसे कैसे पता, मैं तो कोलकाता में हूँ ये यहां कैसे आया? मैंने सर उठा कर देखा तो मुझे मेरे पटना के घर का रूम दिखाई दिया फिर मैंने फर्स देखा वहाँ पानी नहीं था। मैने कहा :
- "ये सपना तो नहीं"
फिर मैंने अपने हाथ पर चिकोटी काटी पर दर्द नहीं हुआ। मैंने कहा :
- "दर्द भी नही हुआ पक्का ये सपना ही है हकीकत नहीं, पर मैं नींद से जागा क्यों नहीं?"
मैंने फिर से चिकोटी काटी और ज्यादा ज़ोर से काटी। इस बार भी दर्द नहीं हुआ। रूम देखने पर वही मेरे घर पटना का रूम। मैने तीन - चार बार और अपने आप को चिकोटी काटी पर दर्द नहीं हुआ और ना ही मेरा रूम बदला। मुझे थोड़ा डर लगा कि मैं पटना कैसे आ गया। मैंने रूम का दरवाजा खोला बाहर देखा तो मेरा घर ही था पटना का। मुझे यकीन होने लगा कि मैं पटना ही आ गया हूं, पर कैसे? ये सवाल था। दरवाज़ा बंद करके मैं वापस अपने बेड पर आया और आंखों को मसलने लगा ताकि मैं सपने से बाहर आ जाऊं क्योंकि मुझे ये विश्वास था कि ये सपना ही है क्योंकि दस से बारह बार चिकोटी काटने पर भी मुझे दर्द नहीं हुआ और मैं कोलकाता से पटना इतनी जल्दी और ट्रेवलिंग के बिना किसी मेमोरी के कैसे आ सकता हूँ। पर इतने चिकोटी काटने और आंखों को मसलने के बाद भी मैं सपने से बाहर क्यों नहीं आ रहा? मैंने फिर से पांच-छः बार चिकोटी काटी और आंखों को मसला पर मैं वहीं का वहीं। मुझे और ज्यादा डर लगने लगा :
- "ये तो सच है कि ये सपना है पर मैं सपने से बाहर क्यों नहीं आ रहा, कहीं मैं सपने में लॉक तो नहीं हो गया?"
मैं आंखों पर ज़ोर डालने लगा और आंखे बड़ी करने लगा, खुली आंखों को ज़ोर दे कर और ज्यादा खोलने की कोशिश करने लगा। तभी मुझे खिड़की से आती रौशनी दिखी जो मेरे कोलकाता के रूम की खिड़की से आ रही थी, फिर मुझे पर्दा दिखा मैंने नज़रें घुमाई तो कोलकाता का रूम देखा। मैंने अपने हाथ पर फिर से चिकोटी काटी इस बार तेज़ दर्द हुआ। मैंने गहरी सांस ली और कहा :
- "फाइनली मैं सपने से बाहर आ गया, मैं कोलकाता में हूँ।"
मेरी खिड़की से आती रौशनी एक झटके से मुझे दिखाई नहीं दी थी और जब मुझे वो रौशनी दिखी तब मेरी आँखें पहले से खुली थी न कि झटके से खुली थी। मैं जब सपने में आंखे खोलकर बड़ी करने की कोशिश कर रहा था तब मुझे ट्रांसफॉर्मेशन होता दिखा, मेरे पटना के रूम से कोलकाता के रूम के बीच। जिस प्रकार एक इमेज पर दूसरा इमेज पर ओवरलैप होता है, पहला फेडआउट होता है और दूसरा फेडइन। पटना के दरवाजे से आती लाइट धीरे - धीरे कोलकाता के खिड़की से आती लाइट में बदलता दिखा और ये बदलाव एक पल का नहीं था लगभग चार(4) सेकंड का था। इस बदलाव के दौरान मुझे एक बार भी अंधकार का अनुभव नहीं हुआ और तबतक अनुभव नहीं हुआ जबतक मुझे रियलाइज हुआ कि मैं कोलकाता में हूँ अर्थात पटना के रूम से कोलकाता के रूम में ट्रांसफॉर्मेशन के दौरान मेरी आँखें एक बार भी झपकी नहीं थीं। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं किसी दूसरे डायमेंशन में था और अभी वापस अपने डायमेंशन में आ गया हूँ। शायद ये कॉन्सेस और सबकॉन्सेस माइंड के ट्रेवल करने का परिणाम हो।
मदन मोहन
23 nov. 2021
👍👍👍
ReplyDeleteThankyou😊
Delete