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ইচ্ছা - Poem - New Era

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  ইচ্ছা                    28 March 2020 ইচ্ছা মানুষ সব কিছু চায় খাবার, power বাড়ি, গাড়ি টাকা - পয়সা ও সম্মান তো খুব বেশি                                      মানে সব গুলো যে মহাবিশ্বে আছে ভালোবাসাও খুব দরকার   কিন্তু বোঝে না যে ভালোবাসা পাবার জন্য ভালোবাসা দিতে হবে।                              -  মদন মোহন

चश्मे के पार - Poem - New Era

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चश्मे के पार                         05 March 2020   चश्मे के पार                         05 March 2020 ग़मों से भरी आंखें तेरी चश्मे के पार साफ झलकती है छुपे हैं दर्द दिल मे तेरे साफ झलकती है चुटकी बजा कर मैं तेरी तकलीफें दूर तो नहीं कर सकता पर कोशिश रहेगी हमेशा मेरी दो पल के लिए ही सही दिल मे सुकूँ और उन आंखों में खुशी ला सकूँ जो साफ झलकती है चश्मे के पार तेरे

নতুন জ্ঞান - Bangla Poem - New Era

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     নতুন জ্ঞান                 29 March 2020 নতুন জ্ঞান এক দিন সকালে একটা কথা শুনলাম ছেলে বললো যে মা আজকে আমি রান্না করবো? মা বললো হ্যাঁ হ্যাঁ করতে পারো ছেলেটা খুব সুন্দর করে হাত ধুয়ে মসলা দিয়ে মাছ মাখলো মুখে হাঁসি যেমন ছোট বাচ্চা প্রথম দিন বিদ্যালয় যায় সেরকম খুব খুশি। দু'টো মাছ ভাজতে ভাজতে খুব ইরিটেট হয়ে গেলো বললো মা রান্না করা বেশ কঠিন মা বললো না রে রান্না করা কঠিন না তাড়া -তাড়ি করা কঠিন ছেলে বললো কিছু বোঝা যায় না কখনও পুড়ে যায় কখনও ভেঙে যায় কাঁচা - পাকা কিছু বোঝা যায় না মা বললো তুমি আজকে করছো আমি তিনশো পঁয়ষট্টি দিন একই জিনিস করে  অভ্যস্ত যখন অভ্যস্ত হয়ে জাবে তুমিও করতে পারবে সেদিন আমি একটা নতুন জিনিস জানলাম কি? অনুভব সব কিছু  শেখাতে পারে? না!...... সে তো আমি আগেই জেনে নিলাম। সেদিন আমি জানলাম যে প্রত্যেক ঘটনা প্রত্যেক কথন প্রত্যেক শব্দ প্রত্যেক ক্ষণ কিছু শেখায়....... যদি বিশ্বাস হয়ে যে কিছুই ইউজলেস নেই তবে প্রত্যেক ঘটনায় একটা নতুন জ্ঞান খুঁজতে পারে।

सोचिये - Poem - New Era

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  सोचिये सोचिये माना  कि अस्थिरता का  दौर है, अभी की लड़ाई  केवल  जीवन चलाने की है, छोटी छोटी आवश्यकताओं को  पूरा करने के अलावा  कुछ  सोचना संभव नहीं हो रहा है, पर  सोचिये  पेट की लड़ाई से  ऊपर उठ कर, रोज़मर्रा की उलझनों से  बाहर निकल कर  धर्म जाती प्रेम व्यापार शिक्षा भूख औपचारिकता  की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की  जद्दोजहद को परे रख कर सोचिये सोचना अतिआवश्यक है समझने के लिए अपना अस्तित्व  बचाने के लिए सोचिये क्योंकि  ये सारी अस्थिरता आपके न सोचने  के लिए ही  पैदा की गई है।                         - डॉ. मोहन

द अदर डायमेंशन - The Othe Dimension

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    द अदर डायमेंशन                         द अदर डायमेंशन                               आज मैंने कुछ ऐसा अनुभव किया जो शायद संभव न हो। सुबह जागने के बाद पानी पी कर मैं दुबारा सो गया अचानक से मेरे रूम का दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आयी मैं उठकर दरवाजा खोला मेरा भांजा आया और मुझे बोला : - "ये पानी को कपड़े से पोछ दीजिये न, पूरा पैर में लग रहा है" मैने टालते हुए उसे बोला : -  "अभी जाओ मुझे सोने दो" फिर मैं सोने के लिए बेड की तरफ बढ़ा उसी समय मुझे याद आया कि पानी तो सुबह पीने के समय मुझसे गिरा था इसे कैसे पता, मैं तो कोलकाता में हूँ ये यहां कैसे आया? मैंने सर उठा कर देखा तो मुझे मेरे पटना के घर का रूम दिखाई दिया फिर मैंने फर्स देखा वहाँ पानी नहीं था। मैने कहा : -  "ये सपना तो नहीं" फिर मैंने अपने हाथ पर चिकोटी काटी पर दर्द नहीं हुआ। मैंने कहा : -  "दर्द भी नही हुआ पक्का ये सपना ही है हकीकत नहीं, पर मैं नींद से जागा क्यों नहीं?" मैंने फिर से...

भोर के सपने (कहानी), Bhor ke Sapane (story)

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भोर के सपने                           भोर के सपने                  सपने, भोर के सपने, दादी कहती थी और माँ भी कि "भोर के सपने हमेशा सच होते हैं।"  तब मैं सोंचता था कि भोर के सपने क्या सच में सच होते हैं,  क्या दादी और मां का कहना सच है? हम जो सपने देखते हैं जिसमें केवल कुछ पलों अथवा घंटों का वृतांत होता है जिसमें उस समय तक पहुंचने का कोई आधार नहीं होता वह क्या सच में सच हो सकता है?                   आज मुझे महसूस हुआ कि भोर के सपने भले ही वास्तविक जीवन में सच हो अथवा ना हो, किंतु देखे गए सपने सच से कम भी नहीं होते। उस सपने का जो एहसास है, वह वास्तविक जीवन में कम नहीं होता। आज सुबह मैंने एक सपना देखा जिसका एहसास दिन के तीन पहर बीत जाने के बाद भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। मेरे चेहरे की मुस्कान अभी भी ताज़ा है और मैं निरंतर उस सपने की मुस्कुराहट को वास्तविक जीवन में भी महसूस कर रहा हूं।       ...

মনের ঘর : My Bangla poem collection

           This collection of the poems is devoted to Gagandeep mam who inspired me for Bangla language. Thanks to Swanupama Due to which it is possible and also thanks to Sayantika Ghosh to correcting me grammatically.                                                    - Madan Mohan              1.     নতুন জ্ঞান                 29 March 2020 এক দিন সকালে একটা কথা শুনলাম ছেলে বললো যে মা আজকে আমি রান্না করবো? মা বললো হ্যাঁ হ্যাঁ করতে পারো ছেলেটা খুব সুন্দর করে হাত ধুয়ে মসলা দিয়ে মাছ মাখলো মুখে হাঁসি যে ছোট বাচ্চা প্রথম দিন বিদ্যালয় যায় সে রকম খুব খুশি। দু টো মাছ ভাজতে ভাজতে খুব এরিটেট হয়ে গেলো বললো মা রান্না করা বেশ কঠিন মা বললো না রে রান্না করা কঠিন না তাড়া -তাড়ি করা কঠিন ছেলে বললো কিছু বোঝা যায় না কখনও...