सोचिये - Poem - New Era
सोचिये
सोचिये
माना
कि अस्थिरता का
दौर है,
अभी की लड़ाई
केवल
जीवन चलाने की है,
छोटी छोटी आवश्यकताओं को
पूरा करने के अलावा
कुछ
सोचना
संभव नहीं हो रहा है,
पर
सोचिये
पेट की लड़ाई से
ऊपर उठ कर,
रोज़मर्रा की उलझनों से
बाहर निकल कर
धर्म
जाती
प्रेम
व्यापार
शिक्षा
भूख
औपचारिकता
की
मूलभूत आवश्यकताओं को
पूरा करने की
जद्दोजहद
को
परे रख कर
सोचिये
सोचना अतिआवश्यक है
समझने के लिए
अपना अस्तित्व
बचाने के लिए
सोचिये
क्योंकि
ये सारी अस्थिरता
आपके
न सोचने
के लिए ही
पैदा की गई है।
- डॉ. मोहन
Beautiful poem completely visible...
ReplyDeleteThanks😊❤️
ReplyDeleteNice poem.I can relate with real Life 👍👍👍
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