Greek theatre and techniques

       ग्रीक रंगमंच की उत्त्पति एवं विकास

                            प्रस्तावना

                                 ग्रीक रंगमंच विश्व का सबसे पुराना रंगमंच मना जाता है। ऐसा माना गया है कि दुनिया में सबसे पहले रंगमंच की शुरुआत ग्रीस में हुई। ग्रीक रंगमंच मुख्यतः दो तरह के नाटकों के लिए जाना जाता है, ट्रेजेडी एंड कॉमेडी। ग्रीस में रंगमंच की शुरुआत ही ट्राजेडी से हुई। कॉमेडी बहुत बाद में आया। ग्रीक रंगमंच शुरुआत से ही विकसित रहा है। या यों कह सकते हैं कि ग्रीक रंगमंच की शुरुआत ट्रेजेडी से हुई, और हम सब जानते हैं कि त्रासदी में पनपी चीजें गंभीर, सुव्यवस्थित और विकसित होती है। शायद यही वजह है कि ग्रीस का रंगमंच शुरू से ही मज़बूत रहा।
                      ग्रीक रंगमंच की शुरुआत 532 ई. पू. मना गया है। उस समय लिखे गए नाटकों और उसकी  प्रस्तुति से ही ग्रीक रंगमंच के समृद्ध होने का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। उस समय लिखे गए नाटकों को देखेने पर पता चलता है कि ये नाटक साहित्यिक रूप से भी मजबूत है। इसकी भाषा, इसकी बुनावट बिलकुल सधी हुई है। ये सही है कि किसी भी देश या राज्य की सभ्यता और संस्कृति जितनी विकसित होती है देश उतनी ही तरक्की करता है। शायद यही वजह है कि आज विश्व के अधिकांश हिस्सों में यूनानी चिकित्सा प्रचलित है। इसके साथ - साथ भाषा भी प्रभवित हुई। बहुत से शब्द ग्रीक शब्द के रुपान्तरण या कुछ फेर बदल कर के बना है। हमे अक्सर यह सुनने या पढ़ने को मिल जता है कि यह शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ ये है आदि। कहने का तातपर्य यह है कि ग्रीस की सभ्यता उन्नत थी, ग्रीस के लोगों की सोंच उन्नत थी इस कारण ग्रीक रंगमंच भी बहुत तेजी से विकास किया। ग्रीक रंगमंच केवल साहित्यक रूप से ही नहीं तकनिकी रूप से भी विकसित था।

ऐसे मंच का निर्माण जिसके मध्य से हज़ारों हज़ार दर्शकों तक बिना किसी साउंड सिस्टम के अभिनेता की मूल आवाज़ पहुचना तकनिकी रूप से विकसित होने का सबूत है।
                             देखा जाये तो ग्रीस में रंगमंच की शुरुआत होने के पहले से ही ग्रीस तकनिकी रूप से विकसित था। तभी तो उत्सव मनाने के लिए जिस स्थान का उपयोग वे करते थे वहाँ पर बोली जाने वाली हर ध्वनि वहाँ बैठे हज़ारो दर्शकों तक बिलकुल आसानी से पहुँच जाती थी, खुली छत होने के बावजूद भी।
                ग्रीक रंगमंच तकनिकी रूप से इतना मजबूत था कि अभिनेता को आसमान से उतरने के लिए ड्यू एक्स मशीना का विकास किया तथा उपयोग किया । अभी इतने आधुनिक हो जाने, नयी नयी तकनीक आ जाने के बाद भी रंगमंच में उस तरह की प्रस्तुति नही हो पा रही है। ग्रीक रंगमंच की उत्पत्ति भी बिलकुल नाटकीय घटना से हुई है। इसके उत्पत्ति की बहुत ही अद्भुत कहानी ही, जिसपर आगे विस्तार से चर्चा की गयी है। साथ ही साथ इसके विकास के क्रम में ट्रेजेडी, कॉमेडी, दर्शक दीर्घा, मंच, अभिनेता द्वारा प्रयोग की गयी वस्तुओं तथा तकनीक की भी चर्चा की गयी है।
                              अभिनेता या रंग निर्देशक रंगमंच के प्रति इतने समर्पित थे की वे केवल प्रस्तुति ही नही करते वल्कि दर्शकों का भी ख्याल रखते थे कि उन तक आवाज़ कैसे पहुचाई जाये, उन्हें ठीक से दिखाई दे रहा है या नही, उन्हें आनंद मिल रह है या हैं आदि। तभी तो वो दर्शकों की सुविधा के लिए तरह - तरह के उपाय ढूंढते रहते और बड़े बड़े मुखौटों, वस्त्र आदि का उपयोग करते। इसपर भी आगे विस्तार से चर्चा की गयी ही।
                                                     
   उत्त्पति

                             ग्रीक रंगमंच की शुरुआत एथेंस शहर में हुई, जब आनंद और उल्लास के देवता डायनोशीयस के सम्मान में बकरे की बलि देने के दौरान कोरस का एक व्यक्ति भावुक हो कर कोरस पंक्ति से बहार आकार अपने हाथों के इशारे से बकरा गीत गाने लगा। इसपर विस्तार से जानने के पहले यह जानना ज़रूरी है कि अभिनय तथा नाटक या रंगमंच की शुरुआत कैसे हुई।

आदिम रंगमंच
                             संपूर्ण विश्व रंगमंच की शुरुआत आदिम रंगमंच से होती है, किन्तु इसके बारे में पुख्ता सबूत या कोई बड़ा साक्ष्य नही होने के कारण अनुमान लगा लेते हैं कि आदिम रंगमंच की शुरुआत कैसे हुई होगी। मनुष्य के विकास के क्रम में जब मनुष्य आदिमानव था और उस समय जो कुछ भी वे करते होंगे जिसे दूसरे आदिमानव देखते होंगे उस प्रक्रिया को आदिम रंगमंच माना गया है। ऐसा माना गया है कि आदि मानव अपनी भूख मिटाने के लिए कई उपाय करते होंगे जैसे पेड़ से फल तोडना, शिकार करना आदि, तो कोई ऐसी घटना जो उनके लिए आश्चर्य जनक होगी, जो उनके लिए नयी होगी, उन घटनाओं का अपने शारीरिक भाषा के माध्यम से अपने आस पास रहने वालों को बताते होंगे। वे जो करते होंगे उसके बारे में उन्हें कोई ज्ञान न होगा, किन्तु वहीँ से अभिनय की शुरुआत मानी गयी है। उदाहरण स्वरूप इस घटना को मानें कि जंगलों में रहने वाला किसी आदिमानव को भूख लगी होगी तब वह पेड़ से फल तोड़ने के लिए पेड़ को हिलाया होगा, या कोई पत्थर फेंका होगा या फिर पेड़ पर चढ़ गया होगा और फल तोड़ने के दौरान वह पेड़ से गिर गया होगा, और वापस अपने साथियों या परिवारों के बीच आया होगा तब उसका दुखी चेहरा देख कर उसके साथी उसका कारण पूछते होंगे तब वह जवाब में अपनी भाषा और शारीरिक भाषा से पूरे घटना को प्रदर्शित करता होगा और बाकि लोग देखते होंगे। उस समय जाने अनजाने बताने वाला अभिनेता और और देखने वाले दर्शक बन जाते होंगे।
                                    बार - बार भूख शब्द का प्रयोग करने का तात्पर्य यह है कि किसी भी जीव के विकास का क्रम पेट से ही शुरू होता है, क्योंकि कोई जीव और कुछ करे या न करे भूख मिटाने का उपाय ज़रूर ढूंढता है। उसी तरह मनुष्य जब आदि मानव होगा तब वह और कुछ करे या न करे अपनी भूख मिटाने के लिए तरह - तरह के प्रयास ज़रूर करता होगा। जब प्रयास करता होगा तब कभी सफल होता होगा कभी असफल और अपने सफलता और असफलता की गाथा अपनी भाषा में ज़रूर करता होगा और उसी क्रम में अपनी शारीरिक भाषा के द्वारा उस घटना का प्रदर्शन भी करने लगा होगा। तब लोग देख कर दुःख या सुख का आनंद प्राप्त करते होंगे साथ - ही - साथ दर्शक यह भी सीखते होंगे की क्या करना चाहिए और क्या नही और कैसे करना चाहिए। अतः कह सकते हैं कि अभिनय या रंगमंच हमेशा से ही ज्ञान प्रदान करने का माध्यम रहा है।
                              मनुष्य हमेशा से ही जिज्ञासु रहा है। किसी भी नई चीज़ को देखकर उसके मन में उस चीज़ के प्रति जिज्ञासा उत्त्पन्न होती है कि वह क्या है? किसी नई घटना को देख कर उसके मन में यह जिज्ञासा उत्त्पन्न होती है कि वह घटना कैसे घटी? आदि। तब वह उस चीज़ या घटना के बारे में सोचता है, और जो चीज़ उसे अच्छी लगती है वह उसका नकल करता है। जब मनुष्य अपने द्वारा किये गए किसी कार्य या महसूस किया गया कोई भाव अथवा किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा किये गए कार्य का नकल करके किसी को दिखाता है तब वह अभिनय ही तो कर रहा होता है। उदहारण के लिए किसी बच्चे को लें तब पाते हैं कि बच्चा किसी भी चीज़ों का जल्दी नकल करता है, क्योंकि उसका दिमाग विकासशील होता है। उसका दिमाग विकास कर रहा होता है । कोई बच्चा अपने पिता , भाई या किसी अन्य व्यक्ति को स्कूटर चलाते देखता है तो अगले ही क्षण उसकी नकल करता है और स्कूटर की ध्वनि अपने मुँह से निकलता है । तब वह अभिनय ही तो कर रहा होता है। चुकि आदिमानव का दिमाग भी विकसित हो रहा था तो वह किसी घटना के दृश्य को बहुत जल्दी अपने अंदर समा लेते होंगे और बार - बार उसकी नकल करते होंगे।
                              अतः यह कहा जा सकता है कि अभिनय की शुरुआत नकल से होती है या अभिनय की पहली सीढ़ी नकल होती है।
                             शिकार युग की शुरुआत के समय जब मनुष्य ने अपने विकास के क्रम में औजार का अविष्कार किया और अपनी भूख मिटाने के लिए, अपना या अपने परिवारों की रक्षा करने के लिए जानवरों का शिकार करना शुरू किया। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि जब वे शिकार करके आते होंगे तब पूरी घटना को दुहरा के बताते होंगे। जब भी 5 या 10 की टोली बनाकर शिकार करने जाते होंगे तब वापस आने के बाद पूरी टोली मिलकर अपने जीत का प्रदर्शन उस घटना की नकल करके अपने परिवारों को दिखाते होंगे इस तरह समूह अभिनय हुआ होगा। आगे कोई ज्यादा समझदार व्यक्ति होगा जिसे पूरी घटना सही सही याद रहती होगी और वह बाकी लोगो को सही सही करने के लिए निर्देश देता होगा इस प्रकार वह निर्देशक बन जाता होगा। औजारों का इस्तेमाल मंच - सामग्री का रूप ले लिया । घटना के प्रदर्शन को और प्रभावी बनाने के लिए जानवरों की खाल ओढ़ लेते होंगे। इस प्रकार वे खास वस्त्र का उपयोग कर लिए होंगे। शिकार के दौरान जानवरों को चकमा देने के लिए अपने शरीर और बदन पर मिट्टी से तरह तरह के निशान बना लेते होंगे, जिसे आज रूप - सज्जा कहा जता है। अपने प्रदर्शन को और भी प्रभावी बनाने के लिए प्रदर्शन स्थल पर पेड़ - पौधे, पहाड़ आदि बनाते होंगे, जो आज सेट के रूप में जाना जाता है। जब आग का आविष्कार हो गया होगा तब शिकार करके आने के बाद शाम में आग जला कर उसके प्रकाश में प्रदर्शन करने लगे होंगे और लोग उस प्रकाश के चारों ओर बैठ कर देखते होंगे।इस प्रकार नाटक में प्रकाश का स्थान अहम् हो गया। ईस तरह आदिम काल में रंगमंच होता होगा।
          आदिम काल में निर्मित गुफाओं में मिले कुछ चित्र जैसे आग के सामने लोग बैठे हैं और कुछ लोग शारीरिक गतिचार्या कर रहे हैं। कहीं पर गोल मंचनुमा थोड़ा ऊपर उठा हुआ स्थान मिलता है जो मंच को दर्शता है, किन्तु पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। इसलिए इस बात को निश्चित नहीं किया जा सकता कि इस तरह से ही रंगमंच की शुरुआत हुई होगी। यही कारण है कि आज भी अनुमान लगा कर ही व्याख्या की जाती है।

ग्रीस में नाटकों की शुरुआत
                           पाश्चात्य रंगमंच के इतिहास में सबसे पुराना रंगमंच ग्रीक रंगमंच है। शिकार युग के बाद कृषि का अविष्कार हो  चूका  था मनुष्य ने शब्द प्राप्त कर लिए थे। समाज बन चुका था। अब मनुष्य एक सामाजिक प्राणी बन चुका था। ग्रीस का समाज देवताओं से बहु डरता था। उनका एक देवता आनंद, उल्लास तथा मदिरा का था, जिसका नाम था डायोनिसस। डायोनिसस के बारे में कहा जाता है कि उसका जन्म बहुत कठनाइयों से भरा था। जन्म के बाद वह युद्ध कला सीखा और पूरी दुनिया घूमा। डायोनिसस ने लोगों को अंगूर की खेती करना तथा अंगूर से शराब बनाने की कला सिखाया और अपने अनुष्ठान के बारे में बताया। यह भी कहा जाता है कि उस समय समाज या देश का नेतृत्व करने के लिए डायोनिसस से अच्छा कोई नहीं था।
                       उस समय ग्रीस का समाज कृषि प्रधान समाज था। वहाँ अंगूर की खेती अत्यधिक मात्रा में होती थी। उनका कल्चर वाइन कल्चर का था। शराब की संस्कृति वाले समाज अपने देवता के सम्मान में एक उत्सव मनाते थे, जिसका नाम था डायोनिसिया। यह वसंत पर्व मार्च के मध्य में मनाया जाता था, साथ ही जनवरी में भी इसके गीत गए जाते थे। इसकी शुरुआत ईशा पूर्व पांचवी शताब्दी मानी जाती है।
                           ग्रीसवासी खेती के बाद फसल काटने पर अपने देवता के लिए एथेंस में वसंत पर्व डायोनिसिया मानाने के दौरान वे गीत गाते थे, अपने देवता डायोनिसस को शराब चढ़ाते थे और बकरे की बलि देते थे ताकि उनके देवता खुश हो जायें और उन्हें तरक्की दें। बकरे की बलि के लिए एक खास स्थान था, जो नगर से दूर पहाड़ो के बीच में बना होता था। एथेंस वासी नगर से जुलूस के रूप में उस स्थान पर जाते थे। इस दौरान वे तरह - तरह की आवाज़ें निकलते थे, हुड़दंग, हल्ला मचाते थे। तरह तरह की क्रियाये भी करते होंगे।  बलि स्थान पर पहुचने के बाद बकरे की बलि देने से पहले उसके लिए शोक गीत गया जाता होगा। प्रमाण के अनुसार बकरे की बलि दी जाती थी और शोक गीत भी गया जाता था, किन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि शोक गीत बकरे के लिये ही गया जाता होगा। इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है कि बकरे कि बलि दी जा रही है तो शोक गीत भी उसी के लिया गया जाता होगा। जिस स्थान पर बकरे की बलि दी जाती थी वह स्थान चौकोर तथा थोड़ा ऊँचा उठा चबूतरे की तरह होता था, जिसे वेदिका कहा जाता था। वेदिका के एक तरफ पुरोहित तथा दूसरी ऒर चालीस से पचास व्यक्ति पंक्तिब्ध हो कर शोक गीत गाते थे, जिसे जिसे कोरस कहा गया। बलि तथा शोक गीत एक गोल घेरे में होता था जिस घेरे के बाहार दर्शक होते थे। बकरे के लिए जो गीत गया जाता था उसे हिंदी में बकरा गीत, कांग्रेज़ी में Goat song तथा ग्रीक में tragos कहा गया। ईसी त्रैगोस से त्रासदी शब्द की उत्तति हुई। कोरस में कुछ चुने लोग ही रहते थे।
                    ऐसा माना जाता है कि एक दिन बकरा गीत गाने के दौरान एक व्यक्ति इतना भावुक हो गया कि वह कोरस पंक्ति से बाहार आ कर दर्शकों के सामने हाथों का इस्तेमाल करके ज़ोर - ज़ोर से बकरा गीत गाने लगा। ये बात लोगों को बहुत पसंद आयी। तब लोगों तथा कोरस चयन कमीटी के सदस्यों ने निश्चय किया कि यह तरीका काफी अच्छा है अपने देवता को खुश करने के लिए। तबसे धीरे - धीरे और विकास हुआ तथा नाटक अस्तित्व में आया।
                        जो व्यक्ति कोरस पंक्ति से बाहर आ कर गाने लगा था उसके बारे में भी कई मिथ है। कुछ लोग कहते हैं कि उसका नाम थेस्पियस था। कुछ लोगों का कहना है कि अभिनय से सम्बंधित कोई ग्रीक शब्द होगा इसलिए बाद में उसे थेस्पियस कहा गया। कुछ का मानना है कि थेस्पियस एक समुदाय था जिससे उस व्यक्ति का सम्बन्ध था।
                         थेस्पियस को पहला अभिनेता मना गया है। कहा जाता है कि थेस्पियस इतना भाबुक हो गया था कि उसे  कोरस के नियमो का भी ख्याल नही रहा और भावुकता वश लाइन तोड़कर आगे आ गया और रो -रो कर हाथों के इशारे कर के गाने लगा।

कोरस
                     कोरस  लोगों का समूह होता था, जिसका चयन कुछ ख़ास आधार पर कुछ खास लोगों के द्वारा किया जाता था। कोरस के बारे में कहा जाता है कि यह वेदिका के पीछे एक पंक्ति में खड़े रहते थे। कुछ लोग मानते हैं कि कोरस के सदस्य बकरे की खाल ओढ़ कर बकरा गीत गाते थे। कुछ का मानना है कि कोरस के सदस्य घोड़े जी पूँछ लगा कर गीत गाते थे।
                    ग्रीक रंगमंच में कोरस की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी।  कोरस नाटक के पात्रों के संवादों से भिन्न एक अन्य साधन दे कर अपने आप से ही संवाद स्थापित करता था। संवाद के उन भिन्न स्वरों, कभी पूरक, कव्ही योज्य तो कभी एक दूसरे के विरोध,  के माध्यम से त्रासदी जन्म लेती है और अपने नाटकीय रूप को प्राप्त करती है । मिले प्रमाणों के आधार पर आरम्भ में कोरस में बारह सदस्य होते थे। सोफोक्लीज़ ने इनकी संख्या बढ़ाकर पंद्रह कर दी। कोरस गीत भी गता था। कभी - कभी कोरस नाटक का चरित्र भी बन जाता था फिर पुनः कोरस बन जाता था । कोरस नाटक  शुरू होने के पहले तथा दो दृश्यों के बीच घाटी घटनाओं को बता कर नाटक के सूत्रों को जोड़ता भी था। कोरस आम आदमी का प्रतीक होता है। कोरस किसी भी चीज़ के पक्ष या विपक्ष में नहीं होता है।
                           धीरे - धीरे ग्रीस में नाटक होने लगे, जब डायोनोसिये पर्व मनाया जाता था। उस पर्व में नाटकों का प्रतिस्पर्धा होने लगा तथा पुरस्कार भी दिया जाने लगा। अब नाटक लिखे भी जाने लगे थे। ग्रीस में नाट्यलेखन के शुरुआत एस्किलस से मन जाता है। जिसका जन्म 525 ई. पू. मना जाता है।
           सोफोक्लीज़ को ग्रीस के सबसे बड़े नाटककार के रूप में देखा जाता है। सोफोक्लीज़ के बारे में प्राप्त प्रमाणों के अनुसार सोफोक्लीज़ का जन्म 496 ई. पू. कॉलोनस के परिवार में हुआ।  उसके पिता संभवतः एक तलवार निर्माता थे। सोफोक्लीज़ ने सेनानायक का पद संभाला तथा 441 ई. पू. लड़ी गयी सेमिया की लड़ाई में भाग लिया। सोफोक्लीज़ की सबसे महत्वपूर्ण रचना ईडिपस त्रयी है।
                         उस समय नाटकों के प्रतिस्पर्धा में दो तरह के नाटक खेले जाते थे पहला त्रासदी दूसरा कामदी। अरस्तु ने त्रासदी को महत्वपूर्ण बताया है तथा कामदी को निचले तबके के लोगों के लिए बताया है।

 त्रासदी
           त्रासदी शब्द का निर्माण ग्रीक के Tragos तथा Ode शब्द के मिश्रण से बना है। जिसका अर्थ होता है बकरा गीत।

          Tragos (Goat) + Ode(song) = tragedy



                    अरस्तु ने सर्वप्रथम tragedy शब्द का प्रयोग अपने ग्रन्थ poltics में किया है। ग्रीक रंगमंच में त्रासदी अहम् है। कह सकते हैं कि ग्रीक रंगमंच की पहचान त्रासदी से ही है। अरस्तु ने नाटक ईडिपस को सर्वश्रेष्ठ नाटक मना है । अरस्तु ने त्रासदी के लिए कुछ बिंदुओं को चिन्हित किया है। वे इस प्रकार से हैं।
1. त्रासदी में भाग्य की प्रबलता होती है। सबकुछ भाग्य तय करता है। भाग्य में जो लिखा है वह हो कर रहेगा।
2. त्रासदी में घटनाएं अचानक घटती है। जिसकी कोई उम्मीद न हो वैसी घटना घटती है। जिसकी प्लानिंग न की गयी हो बस घट जाती है।
3. व्यक्ति को वैसी घटनाओं का शिकार होना पड़ता है जिसमे उसकी कोई हाथ न हो । व्यक्ति उस गलती की सजा पता है जो उससे अनजाने में हुई तथा उस घटनाओं से वह अनभिज्ञ होता है।
4. वह व्यक्ति राज घराने से सम्बन्ध रखता हो। (Fall of tayal person)
5. व्यक्ति उच्च व्यक्तित्व वाला हो। (Novel soul)
               अरस्तु ने कहा कि त्रासदी नाटक देखना चाहिए क्योंकि यह विरेचन करता है। और अरस्तु ने यहीं से विरेचन का सिद्धान्त दिया।
विरेचन का सिद्धान्त (Theory of catharsis)
                अरस्तु के पिता एक यूनानी बैद्ध थे और लोगों का उपचार करते थे। catharsis एक चिकित्सा शास्त्रीय शब्द है। अरस्तु ने इसी शब्द का प्रयोग साहित्य के दृष्टिकोण से किया और कहा कि जिस प्रकार घाव, फोड़े , आदि में भरे मवाद को निकलने के बाद रोगी हल्का और तारो ताज़ा महशुस करता है, उसी प्रकार त्रासदी नाटक देखने के बाद दर्शक अपने आपको हल्का महशुस करता है । फोड़े के अंदर से मवाद निकालने की प्रक्रिया विरेचन (catharsis) कहलाती है।
             अरस्तु ने त्रासदी को महत्वपूर्ण औषधि माना है। अरस्तु के अनुसार मनुष्य के अंदर कई प्रकार के मनोविकार भरे होते हैं, जैसे - ईर्ष्या, द्वेष, भय, आवेग आदि, जो मनुष्य को कुंठित तथा मनोरोगी बनाता है। जब मनुष्य त्रासदी नाटक देखता है तो वह नाटक के पत्रों का दुःख देखकर रो लेता है और उसके अंदर के भावनात्मक विकार बाहर निकल जाता है। सामान क्रिया अभिनेता के साथ भी होती है अभिनेता भी उस चरित्र को निभात्र हुए रोता है तथा अपने मनोविकारों को त्याग देता है। जिसके बाद व्यक्ति तारो ताज़ा और हल्का महशुस करता है।
               दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जब हम अपने दुःख के आगे सामने वाले का दुःख देखते हैं तो अपना दुःख छोटा लगता है और हमारे अंदर एक ताकत आ जाती है अपने दुःख से लड़ने का। और हम अपने आप को मना लेते हैं कि दुःख कट जायेंगे। और हम पुनः अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ते हैं। अतः त्रासदी मनुष्य के मनोविकारों की सफाई करता है।
               अरस्तु ने नाटक को नियमो में बंधा। अरस्तु ने कहा कि नाटक सूर्य की एक परिक्रमा के अंदर ख़त्म हो जाने चाहिए, अर्थात नाटक के कहानी का समय सूर्य की पहली किरण और सूर्य की अंतिम किरण के बीच होना चाहिए।
             अरस्तु ने दूसरा नियम यह लगाया कि नाटक के तीन चरण हो। प्रारम्भ, मध्य तथा अंत। नाटक जब अंत में चरमोत्कर्ष पर ख़त्म हो तब एक ऊंचाई ले कर ख़त्म हो। अर्थात जो दर्शक को झकझोर दे।
            ग्रीक रंगमंच शुरू से ही विकसित था। उसका विकसी होना ज़ाहिर था, क्योंकि क्राइसिस तथा त्रासदी में पनपी कोई भी चीज़ ज्यादा मजबूत होती है ।  उदाहरण स्वरूप यदि कोई व्यक्ति अपना जीवन बहुत गरीबी में बिताया हो अथवा उसे अपने जीवन में त्रासदी झेले हों तो उसके अंदर हर चज़ को झेलने  की क्षमता होती है। वह व्यक्ति ज्ञान का भंडार होता है आदि। ग्रीस में जब नाटक की शुरुआत हुई तब कुछ ऐसी ही परिस्थिति थी।
       
 अभिनेता
                        ग्रीक का रंग मंच बहुत कम समय में इतना विकसित हो गया कि अभिनेता की आवाज़ भी विकसित हो गयी अर्थात जब अभिनेता संवाद बोलता तो वहां बैठे हज़ारों दर्शक साफ़ -  साफ़ सुन लेते थे।दर्शकों तक आवाज़ अच्छे से पहुचती थी तथा दर्शक बिना कठिनाई के संवाद आसानी से सुन लेते थे।
मंच तथा दर्शक दीर्घा
                               ग्रीक रंगमंच के विकसित होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय का मंच ऐसा था कि मंच के केंद्र से बोला गया संवाद गोलाकार ऊंचा होता दर्शक दीर्घा में बैठे हज़ारो दर्शकों तक सही -  सही पहुच जाता था। जिस जगह पर प्रकस्तुति होती थी उस गोलाकार क्षेत्र को orchesta कहा गया। और दर्शकों के बैठने के स्थान को theatron कहा गया।

मुखौटे तथा वस्त्र
                          उस समय अभिनेता तथा निर्देशक दर्शकों का बहुत ख्याल रखते थे। ख्याल इस मामले में कि जैसे ही उन्हें समझ में आया की इतनी दूर दर्शक अभिनेता के भाव तथा मुद्राएं सही से नही देख पाते हैं तो उन्होंनो बड़े - बड़े मुखौटों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। मुखौटे अलग - अलग भाव के बने होते थे। दर्शकों को मूवमेंट तथा मुद्राएं अच्छे से दिखे इसके लिए अभिनेता बड़े और ऊँचे जुटे पहनते थे। साथ - ही - साथ वस्त्र भी बहु बड़े और लंबे पहनते थे। जिससे दर्शक नाटक का पूरा आनंद लेते थे।
ड्यू - एक्स - मशीना का उपयोग
                                 ग्रीक रंगमंच बहुत तेजी से विकसित हुआ। अभिनेताओं के लिए ग्रीन रूम तथा पार्श्व बना, नाटकों में पेंटिग्स का उपयोग होने लगा, सेट लगने लगे। विकास तो और चरम पर तब हो गया जब ड्यू - एक्स - मशीना का अविष्कार हुआ तथा उसका उपयोग होने लगा। ड्यू - एक्स - मशीना के उपयोग से अभिनेताओं को आसमान से नीचे उतरते और वापस आसमान में उड़ जाने जैसे दृश्य दिखाने में सफलता मिली। अब तो आनंद और दुगुना हो गया था। ई.पू. तीसरी - चौथी शताब्दी में अभिनेता का आसमान से उतारना और फिर आसमान में उड़ कर गायब हो जाना ड्यू- एक्स - मशीना के कारण ही संभव ही सका।
                  बहुत कम समय में इतनी चीज़ों का उपयोग दर्शाता है कि ग्रीक रंगमंच बहुत ही तेज़ी से विकसित हुआ।
                  किन्तु यह विकास ज्यादा दिन नहीं चल सका। 272 ई.पू. रोम ने ग्रीस पर हमला कर दिया तथा वहां की रंगशालाएँ तोड़ कर तहस नहस कर दी। रंगशालाओं में जड़े हीरे - जवाहरात सब लूट कर ले गए और बहुत ही जल्दी ग्रीक रंगमंच का पतन हो गया।

                     ग्रीक के नाटककार तथा उनके नाटक
         
                      त्रासदी (Tragedy)
   नाटककार                                    नाटक

Aeschylus.                  1. Prometheus Bond                                             2. Egamaimnar
                                       3.The Suppliants
                                       4. The Persion
                                       5. Seven AgainsThebs

Sophocles                1. King odepus,
                                  2. Ajax
                                  3. Antigone,
                                  4. Electra
                                  5. The women of trachies
                                  6. Philoctetes,
                                  7. Odepus at colonus


Euripides.                  1. Meadia
(Tragedy + satyre)    2. Hippolytus
                                     3. The Trojan women
     
                       कामदी (comedy)

     नाटककार                                        नाटक

Aristophanes.                    1. The archarnians
                                              2. The Knights
                                              3. The Clouds
                                              4. The Wasps
                                              5. Peace
                                              6. The Birds
                                              7. The frogs


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