Copyright Act
स्वत्वाधिकार अधिनियम
किसी भी कला से संबंधित, साहित्य से संबंधित, या तो संगीत से संबंधित कार्य, जिसका, उस सर्जक के मौलिक विचार (ख़याल) के आधार पर सृजन हुआ हो, उन सभी परिणामी फल का मालिक, संबंधित सर्जक को माना जाता है । इसीलिए, ऐसे मौलिक सृजन को, संबंधित सर्जक की मिल्कियत मान कर, उस संपत्ति के हितों की रक्षा करने के लिए बनाये गए, कानूनी प्रावधान को,`प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम`(कॉपी राइट एक्ट)कहते हैं ।"
कॉपी राइट एक्ट में, मौलिक सर्जक को, कॉपीराइट मटिरियल्स (सृजन) की कॉपी करने का, सार्वजनिक रूप से वितरित करने का,उसे आंशिक या पूर्ण रूप से नया स्वरूप प्रदान करने का, प्रकाशित करने का, अमल में लाने का, प्रतिनिधित्व करने का, ऐसे विविध कार्य-अधिकार शामिल किए गए हैं ।
साहित्य रचेता के कॉपी राइट के बारे में ध्यान देने योग्य बात यह है कि, मूल सर्जक के सृजन के साथ, उपर दर्शाए हुए किसी भी अधिकार का उल्लंघन का मामला ध्यान पर आते ही, ये मामला सार्वजनिक हित के साथ जुड़ा होने के कारण, ऐसी मलिन प्रवृत्ति का विरोध कोई भी साहित्य प्रेमी कर सकता है । यहाँ इतना स्पष्ट करना ज़रूरी है कि, ऐसी मलिन प्रवृत्ति करने वाले के खिलाफ़, कॉपी राइट एक्ट के तहत कानूनी कार्यवाही, रचना का मूल रचेता या तो कानूनी प्रक्रिया के तहत आंशिक या पूर्ण रूप से, रचेता ने, जिसे अपना मालिकाना हक़ तब्दील किया हो ऐसा व्यक्ति-संस्था ही, कर सकते है । ऐसी कानूनी कार्यवाही में अवमानना और/या तो आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए, दीवानी/फौजदारी अदालत में कानूनी दावा/शिकायत कर सकते है ।
कॉपी राइट एक्ट मूल सर्जक के अधिकारों की रक्षा करता है । इस कानून के कारण, मूल रचेता को अपना मौलिक सृजन किसी को भी वितरित करने या बेचने का अबाधित अधिकार प्राप्त होता है
मौलिक सृजन यानि कि, सर्जक के मस्तिष्क में से उत्पन्न हुए विचार या तो आंतरिक अलौकिक कल्पनाशक्ति के द्वारा, डिस्क,कागज़,पत्थर पर अंकित किया,तराशा हुआ, मौलिक सृजन जैसे कि,साहित्य (नवल,नाटक, वगैरह), टीवी प्रोग्राम, फ़िल्म्स, संगीत, फॉटोग्राफ्स, ऑडियो-वीडियो CD-ROMs, वीडियो गेम, सॉफ़्टवेयर कोड, चित्र कला, हस्तकला, शिल्पकला वगैरह जैसे, निश्चित परिणामी फल देने वाले, उपयोगी सृजनात्मक प्रयत्न द्वारा निर्माण किया गया सृजन ।
एक प्रकार से मौलिक सृजन में ऐसी पूर्व धारणा समाविष्ट है कि, एक ही विषय पर, एक जैसा, स्वैच्छिक, स्वतंत्र सृजन, कदापि सटीक एक समान नहीं हो सकता । अगर कोई ऐसा दावा करता भी है तो, ये बात नामुमकिन और अविश्वसनीय मानी जाती है ।
विश्व में सबसे पहले,सन-१७०९ में, यूनाइटेड किंग्डमकी रानी ऍन्ने के नाम से (Queen Anne-UK) द्वारा,`Copyright Act 1709 8 Anne c.19` के नाम से, वहाँ के सर्जक के, हितों की रक्षा के लिए बनाया गया और उसे सन-१९१० में लागू किया गया ।
सन-१९६८ में भारत में, प्रिंटीग टैकनॉलॉजी में ज्यादातर,`XEROX` जैसे आसान पूनःमुद्रण उपकरण का चलन बढ़ने के कारण, आदि सर्जक की पूर्वानुमति प्राप्त किए बिना ही उनकी रचनाओं का ग़ैरक़ानूनी पूनःमुद्रण, बड़े पैमाने पर होने लगा, ऐसी ग़ैरक़ानूनी प्रवृत्ति पर लगाम कस ने के लिए, अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट एक्ट की आवश्यकता का ख़याल उद्धव हुआ ।
अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट एक्ट,`Under the Berne copyright convention` में भारत सहित विश्वके करीब सभी देशोंने दस्तख़त किए हैं ।`
Under the Berne copyright convention`की परिभाषा के अनुसार,
"प्रत्येक सृजन कार्य,जिस क्षण से स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त हो जाए,उसी क्षण से,यह सृजन अपने आप ही,कॉपी राइट एक्टसे बाध्य माना जाता है ।"
कॉपी राइट एक्ट का उल्लंघन होने पर, सृजन की अभिव्यक्ति के स्थान पर (किताब, ब्लॉग इत्यादि), "कॉपी राइट संरक्षित सामग्री" की चेतावनी प्रकट न की गई हो, फिर भी, उस सृजन का कॉपी राइट भंग करनेवाले, किसी भी देश के, किसी भी व्यक्ति-संस्था पर, अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट एक्ट के तहत, कानूनी कार्यवाही कि जा सकती है । ऐसी कानूनी कार्यवाही के लिए, मूल सर्जक, अदालती दावा करने से पहले, कभी भी, अपने सृजन के कॉपी राइट पंजीकृत करवा सकता है ।
दावा करनेके लिए,मूल सृजनकी कॉपीका,पंजीकृत करवाना आवश्यक है ।
अंतरराष्ट्रीय कॉपी राइट संगठन के करार के मुताबिक, मूल सर्जक के निधन के पश्चात भी,सत्तर (७०) साल तक उस सृजन पर,कॉपी राइट लागू रहता है ।
कॉपी राइट संरक्षण हेतु, भारत सहित, अलग-अलग देशों के बीच हुए, एक समान कॉपीराइट करार को,`The Berne Convention- बर्न समझौता` कहते हैं । इस करार से बाध्य सभी देश, दूसरे सभ्य देश के, किसी भी सर्जक के कॉपी राइट भंग होने की शिकायत पर, संबंधित देश के कॉपी राइट कानून के तहत, कानूनी कार्यवाही करने के लिए बाध्य होते हैं ।
अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट पंजीकरण की विधि : विश्व के विविध देशों में, कॉपी राइट एक्ट की धारा-रचना में एकसमानता नहीं है, फिर भी कोई सर्जक अगर अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट पंजीकृत कराना चाहे तो, वह `Berne Convention` करार के तहत, इस संगठन के सदस्य
देश में, कॉपीराइट पंजीकृत करवा सकता है । इसके अलावा, कोई भी सर्जक, किसी दूसरे देश में, वहाँ के मौजूदा कानून के अनुसार कॉपीराइट पंजीकृत करवा सकता है । किसी दूसरे देश में, किसी सर्जक के सृजन का कॉपी राइट भंग होने की घटना ध्यान आने पर वह सर्जक, उस देश के सक्षम सत्ताधिकारी सम्मुख शिकायत दर्ज कराके,अपना नुक़सान-खर्च समेत, मांग सकता है ।
कॉपीराइट का मालिकाना हक़ ।
अन्य भौतिक-प्राकृतिक,स्थाई-चल संपत्ति की तरह, कॉपीराइट प्राप्त ख़याल, संशोधन अथवा सृजन को, आंशिक या तो पूर्ण स्वरूप में, ख़रीदा जा सकता है, बेचा जा सकता है, विरासत में दिया जा सकता है या फिर उसके हक़ अन्य के नाम तबदील किए जा सकते हैं ।
कॉपीराइट धारक को किसी भी माध्यम में अपना सृजन पेश करने का, उसमें सुधार करने का, उस सृजन की अनेक प्रतिलिपी (Copy) करने का, सार्वजनिक तौर पर वितरण करने का, भाषांतर करने का, किराये पर देने का और बेंचने का अधिकार प्राप्त है ।
भारत में कॉपीराइट एक्ट की प्रमुख शर्त है, संबंधित सर्जक के सृजन अधिकार की अवधि के बारे में । ये अवधि, सर्जक का, जीवनकाल+निधन के पश्चात साठ साल (60 Years) तक की होती है । फिल्में, रेकार्ड्स (ग्रामोफ़ोन बाजे का तवा), फोटोग्राफ्स, सर्जक के मरणोपरांत प्रकाशन, सरकारी और अंतरराष्ट्रीय कार्य वगैरह के लिए, सृजन अभिव्यक्त होने के दिन से लेकर साठ साल तक कॉपीराइट से सुरक्षित रहता है ।
उपरांत, किसी भी स्वरूप में अभिव्यक्त या प्रसारित हो चुके सृजन, प्रसारित होने के दिन से लेकर, पच्चीस (२५) साल तक कॉपीराइट से सुरक्षित रहता है ।
हालांकि सर्जक को उसका सृजन अभिव्यक्त करने के साथ ही कॉपीराइट प्राप्त होते हैं, पर हमारे देश के कॉपीराइट एक्ट के प्रावधान अनुसार, अपने सृजन के साथ हुए कॉपीराइट उल्लंघन की स्थिति में, अदालत में दावा करने के लिए, मूल सृजन की कॉपी का, पंजीकृत करवाना आवश्यक है । (हालाँकि, दावा करने से एक दिन पहले भी, ऐसा पंजीकरण करवाया जा सकता है ।)
कॉपी राइट हस्तांतरण की सरल पद्धति ।
कॉपीराइट का मौखिक हस्तांतरण या तबदीली कानून के तहत अमान्य है । सृजन का ऐसा हस्तांतरण करते समय, सृजन की पूर्ण विगत, जैसे कि, सृजन का प्रकार, तबदीली आंशिक है या पूर्ण रूप, करार की समयावधि, पारिश्रमिक राशि वगैरह,स्पष्ट और लिखित रूप में होना चाहिए ।उपरांत ऐसे करार में कॉपीराइट धारक खुद या तो उनके द्वारा जिसे अधिकार तबदील किए गए हो, वह मुख़त्यार के दस्तख़त करना अनिवार्य है । हालाँकि, ऐसे तबदीली करार को पंजीकृत करवाना अनिवार्य नहीं है ।
वेबसाइट या ब्लॉग पर, अपने सृजन की रक्षा के,कुछ सरल विकल्प ।
१.किसी भी रचना का सृजन करने के बाद, उसे प्रदर्शित करने के साथ ही, उसी स्थान पर, उस सृजन-श्रेय के बारे में (Credit-Rights), स्पष्ट करके,उसे कानूनी प्रक्रिया अनुसार आरक्षित करें ।
२. अगर ऐसी रचना का सृजन, एकाधिक सर्जक द्वारा किया गया हो तो हरेक के हिस्से के श्रेय का,(Credit-Rights) उल्लेख अवश्य करें । (जैसे,गीतकार+गायक+संगीतकार=गीत ।)
३. जब साझा सृजन हो तब, प्रत्येक हयात (जीवित)या फिर मृत, सभी सर्जक के नामोल्लेख स्पष्ट रूप से करना चाहिए ।
४. प्रकाशक,साहित्य लेखन और संगीत अधिकार रक्षा के लिए,गठित की गई सरकार मान्य सोसायटी (संगठन) में, अपनी रचना का पंजीकरण करवाए ।
५. आपके सृजन कार्य के अधिकार, अन्य को तबदील करते समय करार में, कॉपीराइट (हक़) का उल्लेख स्पष्ट रूप से करें, ताकि, बाद में कोई व्यर्थ विवाद न हो ।
६. अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट संगठन के समझौते के अनुसार, आपके मौलिक सृजन के कॉपीराइट किसी भी स्वरूप में, सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त हो उसी वक़्त, उस सृजन के अधिकार आपको अपने आप प्राप्त हो जाते हैं, चाहे आपने उसे पंजीकृत कराया हो या नहीं ।
७. आपकी मौलिक सृजन क्षमता दर्शाने के लिए, अत्यंत उत्साहित हो कर, अपने ताज़ा मौलिक सृजन को, आपकी साइट या ब्लॉग पर, तुरंत प्रदर्शित करने की ग़लती, हरगिज न करें, उसका ग़लत इस्तेमाल होने की संभावना है ।
संदर्भ
1. कक्षा व्याख्यान। : विधु खरे दास
2. कॉपीराइट एक्ट विकिपीडिया : गूगल सर्च
3. कॉपी राइट की ज़रूरत। : blogspot.in
यह लेख पूर्णतः मौलिक नही है अलग अलग जगह से ली गयी डाटा को एक जगह किया गया है ताकि पढ़ने वाले को आधी से अधिक जानकारी एक ही जगह मिल पाए।
Comments
Post a Comment