Stage management's


                           मंच प्रबंधन


प्रबंधन
           प्रबन्धन  (Management) का अर्थ है - उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए लोगों के कार्यों में समन्वय करना ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। प्रबन्धन के अन्तर्गत आयोजन (planning), संगठन-निर्माण (organizing), स्टाफिंग (staffing), नेतृत्व करना (leading या directing), तथा संगठन अथवा पहल का नियंत्रण करना आदि आते हैं।

संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं।
     प्रबंध एक सार्वभौमिक क्रिया है जो किसी भी संगठन का अभिन्न अंग है। अब हम उन कुछ कारणों का अध्ययन करेंगे जिसके कारण प्रबंध इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है-

1. प्रबंध सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है- प्रबंध की आवश्यकता प्रबंध के लिए नहीं बल्कि संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए होती है। प्रबंध का कार्य संगठन के कुल उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत प्रयत्न को समान दिशा देना है।
2. प्रबंध क्षमता में वृद्धि करता है- प्रबंधक का लक्ष्य संगठन की क्रियाओं के श्रेष्ठ नियोजन, संगठन, निदेशन, नियुक्तिकरण एवं नियंत्रण के माध्यम से लागत को कम करना एवं उत्पादकता को बढ़ाना है।
3. प्रबंध गतिशील संगठन का निर्माण करता है- प्रत्येक संगठन का प्रबंध निरंतर बदल रहे पर्यावरण के अंतर्गत करना होता है। सामान्यतः देखा गया है कि किसी भी संगठन में कार्यरत लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं क्योंकि इसका अर्थ होता है परिचित, सुरक्षित पर्यावरण से नवीन एवं अधिक चुनौतीपूर्ण पर्यावरण की ओर जाना। प्रबंध लोगों को इन परिवर्तनों को अपनाने में सहायक होता है जिससे कि संगठन अपनी प्रतियोगी श्रेष्ठता को बनाए रखने में सफल रहता है।
4.  प्रबंध व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है- प्रबंधक अपनी टीम को इस प्रकार से प्रोत्साहित करता है एवं उसका नेतृत्व करता है कि प्रत्येक सदस्य संगठन के कुल उद्देश्यों में योगदान देते हुए व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करता है। अभिप्रेरणा एवं नेतृत्व के माध्यम से प्रबंध व्यक्तियों को टीम-भावना, सहयोग एवं सामूहिक सफलता के प्रति प्रतिबद्धता के विकास में सहायता प्रदान करता है।
                          प्रबंध के लिए प्रबंधक का  प्रभावी एवं क्षमतावान दोनों का होना महत्त्वपूर्ण है। प्रभावपूर्णता एवं कौशल दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन इन दोनों पक्षों में संतुलन आवश्यक है तथा कभी-कभी प्रबंध को कुशलता से समझौता करना होता है।

मंच प्रबंधन
         मंच प्रबंधक को अच्छे प्लनेर और ओर्गनिज़ेर होना पद्त है।हालांकि कई मशहूर लोगों ने मंच प्रबंधकों के साथ काम हो सकता है , काम ही नहीं ग्लैमरस, अक्सर लंबे समय तक और काफी उबाऊ , दोहराए कार्यों के साथ-साथ शारीरिक रूप से मांग की जा रही शामिल है। रिहर्सल अवधि के दौरान मंच प्रबंधन दल ( अक्सर 3 से बना है - एक मंच प्रबंधक , एक डिप्टी मंच प्रबंधक और एक सहायक मंच प्रबंधक )

                प्रबंधन की आवश्यकता केवल उद्धोग क्षेत्र मे ही नहीं बल्कि फिल्म और थियेटर मे भी काफी हद तक माइने रखती है । बिना मंजमेंट के फिल्म या नाटक करने मे काफी हद तक त्रुटि होने की संभावना रहती है।
फिल्म बनाना एक या नाटक करना ये एक ग्रूप का काम होता है ये काम अकेले करना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है और इस काम को पूरे प्लान के साथ करने की अवस्यकता होती है । इस हिसाब से  चाहिए  कि इनमे प्रबंधन का कार्य व्यवस्थित ढंग से होना चाहिए  ।

रंगमंच तथा फिल्म प्रबंधन -;
    रंगमंच तथा फिल्म मे  प्रबन्धक का कार्य बहमूल्य होता है । रंगमंच मे प्रस्तुती पूर्व से लेकर प्रस्तुति बाद का कार्य होता है चाहे वो मंच सामग्री का हो या वस्त्र, लाइट ,मेक अप रूम के अंदर कि व्यवस्था , साउंड तथा  फस्टेड बॉक्स  कि व्यवस्था आदि प्रस्तुति पूर्व एक प्रबन्धक को करना पड़ता है रंगमंच पेक्षागृह मे किसी प्रकार कि परेशानी या कोई अव्यवस्था न हो एक प्रबन्धक को प्रस्तुति से पूर्व ये जांच लेनी चाहिए । प्रबन्धक को हर समय निर्देशक से और निर्देशक को भी चाहिए कि प्रबन्धक से ताल मेल बनाकर रखे एक प्रबन्धक का ये दायित्व होता है कि नाटक प्रस्तुत से पूर्व सभी लाइटे अच्छी तरह से जांच ले ताकि प्रस्तुति के दौरान कोई समस्या का सामना करना न पड़े वस्त्र विन्यास करता से नाटक से पूर्व उसकी तैयारी  प्रबन्धक को करवानी पड़ती है तथा f.o.h आदि को सही ढंग से जांच लेनी चाहिए । प्रबन्धक का कार्य  नाटक के हर पहलू हर हिस्से मे होता है मंच सामग्री कि पूरी लिस्ट बनाकर समय पर उपलब्द कराना तथा अभिनेताओ के लिए उनका हस्त सामग्री आदि कि समय पर व्यवस्था करना फस्ट ऐड बॉक्स को चेक कर लेनी चाहिए कि उनमे वो हर चीज उपलब्द है जिसकी अवस्यकता प्र्स्तुती के दौरान पड़ सकती है । नाटक के प्रबन्धक को नाटक के दौरान सभी जगहो पर ध्यान देना चाहिए चाहे तकनीकी स्थल जैसे लाइट साउंड ,या   मेकरूम मे सभी सामग्री कि जांच कर लेनी चाहिए कि कही कोई समान छुट तो नहीं गयी  है ।    फिल्म मे भी प्रस्तुति पूर्व मे प्रबंधन का काम अहम होता है । फिल्म मे जब स्क्रीन प्ले तैयार हो जाता है तो फिर निर्देशक का चयन महत्वपूर्ण होता है उसके बाद चरित्र के हिसाब से अभिनेताओ का चयन होता है फिर कैमरे का व्यवस्था करना होता लाइट , रिफलेक्टर ,शूटिंग के दौरान पूरी टिम को नास्ता , खाना आदि कि व्यवस्था  । फिल्म बनाना एक बहुत बड़ा काम होता है इस हिसाब से इसमे पेपर वर्क काफी होता है और मानेजमेंट कि अवश्यकता भी काफी हद तक होती जब सब तय हो जाता है तो । प्रबन्धक का काम लोकेशन पर जाने हेतु गाड़ी कि व्यवस्था करना लोकेसन पर बैठने हेतु कुर्सी, लोकेसन आउटडोर है तो पोलिस प्रोटेक्सन की व्यवस्था करना  र्आदि फिल्म हो चाहे रंगमंच हो प्रबंधन का महत्व दोनों मे ही लगभग बराबर ही होता है । नाटक मे नाटक के समाप्त होने के बाद प्रबन्धक कार्य होता है कि प्रबन्धक वो पूरा समान समेटकर जहाँ से समान मंगवाया है वो उसे वहाँ पहुँचा दे । वर्तमान में फिल्में  अधिक बजट कि बन रही है और फिल्मों मे कुछ आर्थिक सहयोग हो इसलिए आज कल बॉलीवूड मे मनेजमेंट के लिए एम.बी.ए. पास विशेषज्ञ को प्रबंधन का काम दे दिया जाता है उनका काम होता है कि फिल्मों के अंदर क्या प्रयोग किया जाए कि आर्थिक सहयोग मिल सके वो फिल्मों मे वो निम्न वस्तुओं का प्रयोग करवाते जिससे उनका प्रचार होता है और उसके बदले उस प्रॉडक्ट निर्माता से पैसे लेते है उदाहरण के तौर पर अगर फिल्म मे अभिनेता द्वारा टूथपेस्ट का प्रयोग से लेकर बाइक , कपड़ा , साबुन , कोल्ड ड्रिंक आदि का प्रयोग करते समय उसे साफ दर्शको के सामने प्रस्तुत करते है । इसका प्रयोग फिल्मों मे करने से पहले इस प्रॉडक्ट के मालिक से डील करनी पड़ती है तथा इस तरह से फिल्मों मे एक आर्थिक सहयोग भी मिल जाता है । फिल्म मे ये प्रबन्धक का एक महत्वपूर्ण काम होता है रंगमंच मे चुकी हर जगह व्यवसायिक थियेटर तो है नहीं इसलिए प्रबन्धक को फुक – फुक कर कदम रखना पड़ता है । रंगमंच मे प्रबन्धक को वित्तीय क्षेत्र का काफी ध्यान रखना पड़ता है एक प्रबन्धक हमेशा ये सोचता है कि वो कम लागत मे अच्छा काम कर ले लेकिन फिल्म मे लागत का नहीं सोचते उन्हे परफेक्ट काम चाहिए भले ही पैसा पाँच के जगह दस लग जाए ।
फिल्मांकन के बाद फिल्म मे प्रबन्धक का काम होता है कि शूटिंग के जगह से सारा समान पैक कर के सुरक्षित  जगह पर भेजवाए । जीतने भी समान जैसे लाइट , कैमेरा , पूरी तकनीकी सामग्री को वापस व्यवस्थित करे अगर शूटिंग आउट डोर या आउट ऑफ स्टेशन है तो पूरी टीम को होटल मे ठहरने की व्यवस्था तथा उनके भोजन की व्यवस्था आदि प्रबन्धक कि जीमेदारी होती है । नाटक में  भी अगर आउट आफ स्टेशन नाटक करना है तो कलाकारो के जाने हेतु वाहन कि व्यवस्था करना तथा सभी  कलकारों के भोजन, ठहरने आदि कि व्यवस्था करना प्रबन्धक का ही कार्य होता है  ।
कलाकारों कि जरूरत के सभी समान समय पर उपलब्ध  करना प्रबन्धक का कर्तव्य होता है । चाहे वो नाटक हो या फिल्म का हो दोनों का लगभग काम एक जैसा होता है बशर्ते फिल्म मे प्रबन्धक की मेहनत कुछ अधिक होती  है ।
फिल्म हो चाहे नाटक प्रबन्धक का काम हर कदम पर दिखाता है। निर्देशक का काम निर्देशन अभिनेता का काम अभिनया इस तरह से सब का अपना एक स्पेशल काम है लेकिन प्रबन्धक एक ऐसा हिस्सा होता है कि जिससे लगभग सभी को काम पड़ता है बिना प्रबन्धक के पूरा प्रोडक्शन एक अनाथ कि भांति लगेगा और पूरा प्रोडक्शन   का बेलेन्स बिगड़ सकता है । एक प्रोडक्शन  मेनेजर पूरे प्रोडक्शन की बैसाखी होती है ।

                                          संदर्भ

1. कक्षा व्याख्यान।         :      डॉ. विधु खरे दास

2. थियेटर में मंच प्रबंधन    :    गूगल सर्च
     विकिपीडिया

3. प्रबंधन विकिपीडिया।      :    गूगल सर्च


4. मंच प्रबन्धन।                    :      blogspot.com

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